Skip to main content
विचार बीज से वटवृक्ष तक

श्री मणि लक्ष्मी धाम – जैन तीर्थ

श्री मणि लक्ष्मी धाम, लुधियाना

प्रभु एवं प्रकृति के चमत्कार होते पढ़े और सुने हैं। लेकिन इस चमत्कारिक निर्माण को हम सब देख भी रहे हैं और प्रकरण के होने के साक्षी भी हैं कि किस तरह परम पूज्य गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्रीमद्‌ विजय नित्यानंद सूरिजी द्वारा अपनी दिव्य दृष्टि से देखा गया एक विचार बीज आज एक विशाल वटवृक्ष के रूप में बदल रहा है। ऐसे गुरुदेव को कोटिश: वंदन एवं नमन। थोड़ा विस्तार से:

सन्‌ 2018 के ऐतिहासिक चातुर्मास के उपरात गुरुदेव की प्रेरणा से श्री आत्म-वल्लभ सर्वमंगल ट्रस्ट का महागठन हुआ। हमारे कारण पूछने पर कहने लगे-कुछ करेंगे जिससे जिनशासन की शोभा बढ़ेगी। कुछ दिन पश्चात्‌ जब भगवान महावीर वनस्थली से विहार करते हुए गुरुदेव ने समाचार दिया कि साथ लगती जमीन लेने की भावना रखो। जो जमीन 45 वर्ष से नहीं मिल रही थी उसके लिए भूमि मालिक मान गया और 4000 गज ज़मीन का ट्रुकड़ा ट्रस्ट ने खरीद लिया। यहां से शुरु हुआ चमत्कारों का सिलसिला एवं इस पुण्य भूमि का प्रताप।

श्री आत्मानन्द जैन महासभा उत्तरी भारत के तत्कालीन प्रधान श्री सुरेन्द्रगाल जैन (जालंधर) जी के नेतृत्व में गुरुदेव के चातुर्मासिक प्रवेश में सम्मिलित होने हेतु दादर मुम्बई गए। रास्ते में एक नूतन मंदिर आया श्री मणि लक्ष्मी तीर्थ। श्री आत्म-वल्लभ सर्वमगल ट्रस्ट के प्रधान श्री सुरेन्द्र मोहन जैन ने कहा चाहे छोटा हो लेकिन ऐसा सुन्दर अपनी लुधियाना वाली जगह पर बने तो बहुत अच्छा रहेगा। परम पूज्य गच्छाधिपति शातिदूत जैनाचार्य श्रीमद्‌ विजय नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा. के पास मुम्बई पहुँच कर हमने ट्रस्ट की ओर से अपने भाव रखे और चमत्कार देखिए कि बगैर किसी से पहचान के अगले दिन श्री दिनेश भाई ठलिया वाले जो कि श्री मणि लक्ष्मी तीर्थ के मुख्य ट्रस्टी हैं, गुरुदेव के चरणों में आए और पूज्याचार्यश्री ने हमारे संघ की भावना उनके आगे रखी जिसे उन्होंने
विशाल हृदय का परिचय देते हुए सम्पूर्ण मंदिर बनाने की स्वीकृति दे दी। यहां से प्रारम्भ हुआ श्री आत्म-वल्लभ जैन सर्वमंगल ट्रस्ट द्वारा निर्मित यह तीर्थ और चमत्कारों का सिलसिला।

सबसे पहले श्री दिनेश भाई अपने मित्र मुकेश भाई (श्री महावीर जैन विद्यालय) के साथ लुधियाना आये, भूमि का निरिक्षण और परिक्षण किया तथा भूमि की जीवंत ऊर्जा का दिव्याभास किया और उसे जिनालय के लिए उपयुक्त समझा, यहां से शुरु हुआ इस अद्भुत बेजोड़ और अद्वितीय तीर्थ के निर्माण का कार्य।

दिनांक 28.02.2020 को गच्छाधिपति गुरुदेव द्वारा प्रदत्त मुहूर्तानुसार भूमि पूजन, खनन्‌ तथा 9 शिलाओं के चढ़ावों की जाजम बिठाई गई जिसमें उत्साहपूर्वक चढ़ावें बोल कर लाभकर्ताओं ने लाभ प्राप्त किया।

दिनांक 29.02.2020 को तीर्थ का शिलान्यास परम पूज्य गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्रीमद्‌ विजय नित्यानन्द सूरीश्वरजी म.सा. जी की आज्ञानुवर्तिनी पंजाब शेरनी परम पूज्या साध्वी श्री प्रमोदश्रीजी म.सा. की सुशिष्या परम पूज्या साध्वी प्रीति रतनाश्रीजी, साध्वी प्रीतिसुधाश्रीजी आदि ठाणा की निश्रा में सम्पन्न हुआ। शिलान्यास पश्चात्‌ धर्मसभा हुई। साध्वीजी म.सा. ने जब तक तीर्थ का निर्माण पूर्ण होकर प्रतिष्ठा न हो तब तक लड़ीवार आयंबिल तप करने की समाज को भावना दी। तब से लेकर आज तक आयबिल की कड़ी लगातार चल रही है। इसी बीच कोरोना भी आया जिसकी वजह से कुछ देर तीर्थ का कार्य रुका लेकिन आयबिल तप के प्रभाव से जल्द ही शुरु हो गया।

इस तीर्थ में विराजमान होने वाले मूलनायक श्री आत्मवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान सहित सभी जिन बिबों की घड़ाई भी यहीं पर मूर्तिकारों द्वारा की गई। श्रावक श्रेष्ठ श्री दिनेश भाई ठलिया वालों के कुशल मार्गदर्शन और उत्साहपूर्ण भावों से और साथ ही हमारे ट्रस्ट के चेयरमैन ओसवाल कुलभूषण श्री जवाहर लालजी ओसवाल प्रधान श्री सुरेन्द्र मोहनजी जैन के नेतृत्व में एवं सभी पदाधिकारियों और दानदाताओं के सहयोग से यह निर्माण यात्रा अब परिपूर्ण होकर प्रतिष्ठा के पुण्यपलों के पास पहुँच चुकी है।

प्रभु पार्श्व के 108 शीर्षस्थ तीर्थों के पश्चात्‌ अब 09वें तीर्थ से सुशोभित होने जा रहा है श्री आत्मवल्लभ पार्श्वप्रभु मंडित श्री मणिलक्ष्मी धाम – जैन तीर्थ। सम्पूर्ण विश्व के भाल पर विजय तिलक एवं मुख मंडल पर राजमुकुट एवं यशकिलंगीरुप यह तीर्थ जिनशासन की एक अनमोल धरोहर सम है।

विशेष दृष्टव्य एवं ज्ञातव्य है कि इस श्री मणिलक्ष्मी तीर्थ महाप्रासाद को कुशल शिल्पियों ने कला का करिश्मा दिखाते हुए बेमिसाल स्वरुप प्रदान किया है, जिसमें राणकपुर की बाँधनी, जैसलमेर की कला व आबू देलवाड़ा की नक्कासी का त्रिवेणी संगम दर्शनीय हैं | यह महातीर्थ लाखों-करोड़ों अनन्य प्रभु भक्तों की आध्यात्मिक ऊर्जा का महास्रोत है। भक्ति, कला, साधना के अनूठे अनुपम रूप, यह महातीर्थ जिनशासन में ऐतिहासिक एवं नूतन स्वर्णीम धरोहर का स्वरुप लेगा।

परमार क्षत्रियोद्धारक परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद्‌ विजय इन्द्र-दिन्न सूरीश्वरजी म.सा. के जन्म शताब्दी वर्ष में यहां पर अभिनव अलौकिक तीर्थ की जहां एक ओर अंजनशलाका प्रतिष्ठा संपन्न होगी वहीं दूसरी ओर यहीं पर गच्छाधिपति गुरुदेव अपने साधु-साध्वीवृद सहित वर्ष 2023 का भव्यातिभव्य वर्षावास भी करेंगे एवं महामंगलकारी उपधान तप का आयोजन भी संपन्न करवाकर इस भूमि को जप, तप, साधना, आराधना, भक्ति और ध्यानयोग से विशिष्ट ऊर्जावान बनाएंगे।

जब तीर्थ बनना शुरु हुआ तो जगह कम लगने लगी तो साथ लगती जगह ट्रस्ट ने खरीद ली। दिनेश भाई ने कहा मंदिर के साथ-साथ धर्मशाला, भोजनशाला, प्रवचन हॉल, गुरु उपाश्रय की भी जरुरत है तो और जमीन ले ली गई और सभी का कार्य एक साथ शुरु हो गया। आज लगभग 500 कारीगर इस विशाल तीर्थ के निर्माण में लगे हुए हैं। इस पूरे कार्य का सभी ट्रस्टियों ने मिल कर बीड़ा उठाया। तीर्थ के निर्माण के वीडियो सोशल मीडिया पर डाले जाने लगे, जिससे पूरे भारत में इस तीर्थ की चर्चा एव सराहना होने लगी। जैन ही नहीं अपितु अजैन भी इस तीर्थ की भव्यता को देखकर मत्रमुग्ध हो गए। यही नहीं इतनी तेजी से बनते इस तीर्थ को लोग चमत्कार मानने लगे।

सचमुच में श्री आत्म-वल्लभ पार्श्वनाथ जिनालय, माता पद्मावती मंदिर, उपाश्रय, पेढ़ी कार्यालय, भोजनशाला, धर्मशाला इतनी जल्दी बने, यह अपने आप में एक चमत्कार ही था। मेरी समझ में यह प्रभु कृपा ही थी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति शांतिदूत जैनाचार्य श्रीमद्‌ विजय नित्यानंद सूरीश्वरजी म.सा. की दिव्य दृष्टि ही थी जिसका स्वप्न उन्होंने पांच वर्ष पहले ही देख लिया था और आज वह साकार भी हो गया और एक वटवृक्ष बन कर भारत का एक अद्वितीय, बेजोड़, अजोड़ तीर्थ बन गया है।

“”

विनोद जैनमहामंत्री