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अविश्वसनीय – अदिव्तीय – अविश्वसनीय

श्री मणि लक्ष्मी धाम – जैन तीर्थ

श्री मणि लक्ष्मी धाम, लुधियाना

भारत वर्ष में पुरातन काल से आज तक बहुत से मंदिर एवं जिनालय बने हैं। इनमें जैन धर्म के मंदिर न सिर्फ शिल्पकला में बल्कि भव्यता में भी अजोड़-बेजोड़ है। आबू-देलवाड़ा राणकपुर जैसे देदिप्यमान जिन मंदिर इसका साक्षात्‌ जाज्ञवल्यमान उदाहरण है। जिन्होंने इतिहास में अपना प्रमुख स्थान बनाया है। आज के युग में एक ऐसा ही स्वर्णीम इतिहास बनाने वाला तीर्थ है, श्री मणि लक्ष्मी धाम-जैन तीर्थ (लुधियाना) जो न सिर्फ अपनी कला एवं सौन्दर्य से अद्वितीय है बल्कि इसका अविश्वसनीय गति से निर्माण हुआ है एवं आने वाले इतिहास में अविस्मरणीय होने जा रहा है।

उत्तर भारत में मुख्य राष्ट्रीय मार्ग (जी.टी. रोड़) पर दोराहा (लुधियाना) की धन्य धरा पर बना यह विशाल तीर्थ अपने आप में एक अजूबा है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसकी नींव 24 फीट गहरी तथा कंक्रीट एवं पत्थर से भरी गई क््‌ है। इस मंदिर में कोई सरिया इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसकी आयु सैंकड़ों वर्षो है की है और इसे किसी भूकंप से खतरा नहीं है। सम्पूर्ण जिनालय श्वेत मकराना संगमरमर पाषाण से बनाया गया है, जिसकी चमक को खुली आँखों से देखना मुश्किल है। सम्पूर्ण मंदिर में धरती से ध्वजा तक शिखर, स्तम्भ, द्वार, तोरण द्वार, श्रृंगार चौकी, रंगमंडप, गुम्बज आदि पर बेमिसाल कामणगारी नक्काशी की गई है,

उत्तर भारत के अभिनव एवम् आलोकित मणि लक्ष्मी धाम तीर्थ के स्वप्न दृष्ठा एवं प्रतिष्ठा चार्य गच्छाधिपति प. पू. आचार्य नित्यानन्द सूरी जी म।

जिसका वर्णन निम्नलिखत प्रकार से है..
जैसा कि सभी को विदित है कि प्रभु पा्श्वनाथ के 08 नाम और तीर्थ हैं। जब श्री मणि लक्ष्मी धाम में मूलनायक के रुप विराजित करने के लिए प्रभु पार्श्वनाथ का नाम तय हुआ तब दिनेशभाई ठलियावालों ने गुरुदेव को मूलनायक के सन्दर्भ में अपनी भावना व्यक्त की और गुरुदेव ने प्रभु का नाम रखा श्री आत्मवल्लभ पार्श्वनाथ। जो कि एक नया नाम और स्वरुप उजागर हुआ है और वो हमारे त्रिभुवननाथ, त्रैलोक्यदीपक सम श्री मणि लक्ष्मी तीर्थ मंडण कहलायेंगे |

सम्पूर्ण मंदिर में बेमिसाल नक्काशी की गई है। इस नक्काशी में न सिर्फ शिल्पकला का सौन्दर्य छलकता है बल्कि शिल्पकला के माध्यम से जिन धर्म को प्रदर्शित करने का सुंदर प्रयास किया गया है | 1,80,000 वर्ग फीट के विशाल एवं पवित्रतम भू-भाग पर निर्मित इस कलात्मक त्रिशिखरीय शिल्प शास्त्र अनुरुप आत्मवह्लभ पार्श्व महाप्रासाद, बृहद्‌ महाधरप्रासाद सहित कलात्मक देवकुलिकाओं, श्री पद्मावती देवी मंदिर, धर्मशाला, उपाश्रय आदि का देवविमानरुपी महाअवतरण इस अलौकिक भूमि पर हुआ है। तीर्थ निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण पर पहुँच चुका है।

चन्द्रमा की धवल चाँदनी के समान मकराना श्वेत संगमरमर में हजारों कुशल शिल्पियों ने दिन-रात अथक श्रमकर कला का बेमिसाल सर्जन कर इसे प्राणवान बनाया है।

भव्यता, दिव्यता एवं कलात्मकता की त्रिवेणी संगम बन गया है यह श्री मणि लक्ष्मी धाम – जैन तीर्थ..

देवलोक के दिव्य जिनप्रासाद की झलक साकार हुई है, इस धरती पर …

कुशल शिल्पियों के कुशल हाथों से प्रस्तर खड़ों पर बजने वाली टंकण, मानो आयोजित होने वाले अतिभव्य प्रतिष्ठा महामहोत्सव पर आगमन का अग्रिम आमंत्रण दे रही है।

ऐसे इतिहास रचने वाले तीर्थ को प्रेरणा देने वाले वर्तमान गच्छाधिपति प.पू. आचार्य श्री नित्यानन्द सूरीश्वर जी म.सा., शिल्पकारों को, निर्माता को शत्‌-शत्‌ नमन सह अनुमोदन, जिन्होंने श्री मणि लक्ष्मी धाम-जैन तीर्थ जैसा अविस्मरणीय, अद्वितीय और अविश्वसनीय धरोहर सम विरासतरुप तीर्थ उत्तर भारत की धरती पर अवतरित करके इतिहास रच दिया हैं |

चलो, हम भी इस महातीर्ध के अंजनशलाका प्रतिष्ठा के महामहोव्सव के प्रति प्रवाहित हो..

पश्माव्म भक्ति, मोक्ष ग्रातति का शटल, सचोट एवं शुरक्षित आलंबन… हमाश प्याय श्री मणि ली धाम-नैन तीर्थ का दिव्य सपर्शन करें…

शिलपकारों ने अपनी सुन्दर शिलपकाला से निम्नलिखित प्रसंगो को उजागर किया है:-

  • श्री भक्तामर उतोत्र
  • श्री पार्श्वनाध प्रभुनी का नीवन चारित्र
  • अष्टकर्म
  • अष्टमंगल
  • अटष्ट महाव्रातिहार्य
  • नवग्रह
  • इन्द्र-इन्द्राणी, चौसठ योगिनी
  • चौबीस वश्न- यश्षिणी
  • परमात्मा महाबीर के १९ गणधर
  • २० बिहस्‍मान तीर्थकर
  • १६ बिद्या देवी
  • १६ महासतीयाँ
  • ८ लक्ष्मी सवरूप
  • ८ सरस्वती सवरूप
  • १४ महा स्वप्न
  • नृत्यांगनाएँ
  • गर्भगृह, प्रनाल, द्वारशाख, कोली, गूढमंडप, मुख्य घुम्मट, त्रिकमंडप, स्तंभ, श्रृंगार चौकी, शिखर, मुख्य द्वार, कणपीठ मंडोवर आदि की शिल्पकला ब्रह्मांड की प्रतिकृति स्वरुप है, यह तो वास्तव में श्री पार्श्वनाथ परमात्मा के आत्मा की अनुभूति है। सम्पूर्ण शिल्प में नेत्र रंजक कलामय सर्जन है, साथ-साथ आत्म रंजक प्रभु के दर्शन भी है मजबुताई के क्षेत्र में अचंभित करता सुदृढ़ जिनालय, शिल्पकला के विषय में देवलोक के देवालयों के समकक्ष है यह सुंदर जिनालय।